अज़हर इनायती
ग़ज़ल 44
अशआर 46
अपनी तस्वीर बनाओगे तो होगा एहसास
कितना दुश्वार है ख़ुद को कोई चेहरा देना
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किसी के ऐब छुपाना सवाब है लेकिन
कभी कभी कोई पर्दा उठाना पड़ता है
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चौराहों का तो हुस्न बढ़ा शहर के मगर
जो लोग नामवर थे वो पत्थर के हो गए
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जवान हो गई इक नस्ल सुनते सुनते ग़ज़ल
हम और हो गए बूढ़े ग़ज़ल सुनाते हुए
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पुस्तकें 9
चित्र शायरी 3
वीडियो 16
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