अज़ीज़ हैदराबादी
ग़ज़ल 18
अशआर 25
हुस्न है दाद-ए-ख़ुदा इश्क़ है इमदाद-ए-ख़ुदा
ग़ैर का दख़्ल नहीं बख़्त है अपना अपना
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere