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अज़ीज़ तमन्नाई

1926

अज़ीज़ तमन्नाई

ग़ज़ल 15

नज़्म 18

अशआर 16

दहर में इक तिरे सिवा क्या है

तू नहीं है तो फिर भला क्या है

मिल ही जाएगी कभी मंज़िल-ए-मक़्सूद-ए-सहर

शर्त ये है कि सफ़र करते रहो शाम के साथ

ये ग़म नहीं कि मुझ को जागना पड़ा है उम्र भर

ये रंज है कि मेरे सारे ख़्वाब कोई ले गया

एक सन्नाटा था आवाज़ थी और जवाब

दिल में इतने थे सवालात कि हम सो सके

थपकियाँ देते रहे ठंडी हवा के झोंके

इस क़दर जल उठे जज़्बात कि हम सो सके

पुस्तकें 2

 

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