बाबर रहमान शाह के शेर
किसी के जाल में आ कर मैं अपना दिल गँवा बैठा
मुझे था इश्क़ क़ातिल से मैं अपना सर कटा बैठा
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मुफ़्लिसी ने जा-ब-जा लूटा हमें
अब बचा कुछ भी नहीं लुटवाएँ क्या
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दिल से आख़िर चराग़-ए-वस्ल बुझा
क्या तमन्ना ने इंतिक़ाम लिया
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आतिश-ए-इश्क़ जब जलाती है
जल के मैं नोश-ए-जाम करता हूँ
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दिल ने हम से अजब ही काम लिया
हम को बेचा मगर न दाम लिया
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ऐ परी-ज़ाद तेरे जाने पर
हो गया ख़ुद से राब्ता मेरा
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थकन से चूर है सारा वजूद अब मेरा
मैं बोझ इतने ग़मों का तो ढो नहीं सकता
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