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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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बासित अली राजा

ग़ज़ल 7

नज़्म 1

 

अशआर 4

एक ही शख़्स गवारा है ज़मीं पर मुझ को

वो भी आवाज़ लगाए तो पलटता नहीं हूँ

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ऐसी वहशत है मिरे दोस्त तुम्हारी तस्वीर

आज दीवार से गिरते ही जला दी मैं ने

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ख़ामुशी है हर तरफ़ हर जा मुसलसल ख़ामुशी

ख़ामुशी ऐसी कि ख़ुद को सुन नहीं पाता हूँ मैं

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मुझ से मिलना है तो उस शख़्स के हमराह मिलें

जो मिरे सामने तो आप की ता'ज़ीम करे

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नस्री-नज़्म 1

 

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