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बहज़ाद लखनवी

1900 - 1974 | कराची, पाकिस्तान

नात, ग़ज़ल और भजन के ख़ास रंगों के मशहूर शायर । उनकी मशहूर ग़ज़ल ' ए जज़्बा-ए-दिल गर मैं चाहूँ ' को कई गायकों ने आवाज़ दी है

नात, ग़ज़ल और भजन के ख़ास रंगों के मशहूर शायर । उनकी मशहूर ग़ज़ल ' ए जज़्बा-ए-दिल गर मैं चाहूँ ' को कई गायकों ने आवाज़ दी है

बहज़ाद लखनवी के शेर

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दिल की ख़लिश चल यूँही सही चलता तो हूँ उन की महफ़िल में

उस वक़्त मुझे चौंका देना जब रंग पे महफ़िल जाए

वफ़ाओं के बदले जफ़ा कर रहे हैं

मैं क्या कर रहा हूँ वो क्या कर रहे हैं

आता है जो तूफ़ाँ आने दे कश्ती का ख़ुदा ख़ुद हाफ़िज़ है

मुमकिन है कि उठती लहरों में बहता हुआ साहिल जाए

जज़्बा-ए-दिल गर मैं चाहूँ हर चीज़ मुक़ाबिल जाए

मंज़िल के लिए दो गाम चलूँ और सामने मंज़िल जाए

मैं ढूँढ रहा हूँ मिरी वो शम्अ कहाँ है

जो बज़्म की हर चीज़ को परवाना बना दे

ज़िंदा हूँ इस तरह कि ग़म-ए-ज़िंदगी नहीं

जलता हुआ दिया हूँ मगर रौशनी नहीं

हम भी ख़ुद को तबाह कर लेते

तुम इधर भी निगाह कर लेते

मुझे तो होश था उन की बज़्म में लेकिन

ख़मोशियों ने मेरी उन से कुछ कलाम किया

इश्क़ का एजाज़ सज्दों में निहाँ रखता हूँ मैं

नक़्श-ए-पा होती है पेशानी जहाँ रखता हूँ मैं

गो मुद्दतें हुई हैं किसी से जुदा हुए

लेकिन ये दिल की आग अभी तक बुझी नहीं

'बहज़ाद' साफ़ साफ़ मैं कहता हूँ हाल-ए-दिल

शर्मिंदा-ए-कमाल मिरी शाइ'री नहीं

देखने वालो मुझे हँस हँस के देखो

तुम को भी मोहब्बत कहीं मुझ सा बना दे

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