आँसू मिरी आँखों में हैं नाले मिरे लब पर
सौदा मिरे सर में है तमन्ना मिरे दिल में
बेख़ुद बदायूनी, अब्दुल हई (1857-1912) बेख़ुद ख़ुद अपने बक़ौल नौजवानी में हुस्न-परस्त और आ’शिक़-मिज़ाज थे। जवानी के जोश में किसी को उस्ताद नहीं बनाया मगर बाद में मौलाना ‘हाली’ की शागिर्दी में आए। लेकिन जब ‘हाली’ आ’शिक़ाना रंग छोड़ कर ग़ज़ल को सुधारने में लग गए तो ‘बेख़ुद’ ने उन्हें छोड़़ कर ‘दाग़’ देहलवी का दामन थाम लिया, और उनके शागिर्दों में मुम्ताज़ मक़ाम हासिल किया। पेशे से वकील थे। रियासत जोधपुर में स्पेशल मजिस्ट्रेट भी रहे।