बेतकल्लुफ़ शाजापुरी के शेर
फूल जाते हैं ज़रा सी बात पर
क्या चने की दाल जैसे लोग हैं
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हर चीज़ मेरे घर की आशिक़ हुई है तुझ पर
देती है मेरी मुर्ग़ी अंडे तिरी गली में
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इक रात देख लेना ए'लान-ए-जंग होगा
गाड़े हैं आशिक़ों ने झंडे तिरी गली में
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हैं मुन्ने की अम्मा की पक्की सहेली
शकूरन ग़फ़ूरन वग़ैरा वग़ैरा
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हर उस्ताद शाइ'र के घर में मिलेंगे
ये हर डे ये चूरन वग़ैरा वग़ैरा
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