दाऊद मोहसिन के शेर
हर एक शाम सँवर जाएगी मिरी 'मोहसिन'
हर एक बात तुम्हारी है शाइ'री की तरह
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नहीं है पास किसी का किसी को ऐ 'मोहसिन'
कि आज़मा कि उन्हें बार बार देखा है
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ज़िंदगी टूट के बिखरी है सर-ए-राह अभी
हादिसा कहिए इसे या कि तमाशा कहिए
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इतने फ़रेब खाए हैं क़ुर्बत में यार की
'मोहसिन' फ़रेब और भी खाया न जाएगा
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कौन अपना है यहाँ कौन पराया कहिए
कौन देता है भला दुख में सहारा कहिए
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मैं चाहता हूँ तुम्हें अपनी ज़िंदगी की तरह
मिरे वजूद पे छा जाओ चाँदनी की तरह
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अफ़्साना दर्द-ओ-ग़म का सुनाया न जाएगा
अब ज़ख़्म-ए-दिल किसी को दिखाया न जाएगा
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बात तेरे नाम की होने लगी
दिल में मेरे सनसनी होने लगी
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सारे-जहाँ में क़िस्से ये मशहूर हो गए
भाई हमारे मुंकिर-ए-दस्तूर हो गए
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मसनदें तख़्त-ओ-ताज दस्तारें
कौन किस के लिए लुटाते हैं
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हर तरफ़ दर्द का आहों का समाँ होता है
पानी जलता है समुंदर में धुआँ होता है
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ज़ब्त की थी शर्त दिल से जाने क्यूँ
लम्हा लम्हा बेकली होने लगी
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रफ़ाक़तों का जहाँ तार-तार देखा है
वजूद-ए-ज़ीस्त का उड़ता ग़ुबार देखा है
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लम्हा लम्हा पुकारे जाते हैं
कौन दिल के क़रीब आते हैं
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ज़ख़्म-ए-दिल दाग़-ए-जिगर दाग़-ए-तमन्ना की क़सम
चाँद से फूल से डर हम को यहाँ होता है
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कितना अजीब-तर है अक़ीदा जनाब का
पत्थर की मूरतों से वफ़ा माँग रहे हो
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