दिनेश शुक्ल के दोहे
इक चुटकी भर चाँदनी इक चुटकी भर शाम
बरसों से सपने यही देखे यहाँ अवाम
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दिन घड़ी में बाँधता नए साल के फूल
सुख दुख की इक चाँदनी मुस्कानों की धूल
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महलों की बारा-दरी उजले उजले काँच
आँसू भीगी छुट्टियाँ धूप रही है बाँच
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