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एजाज़ वारसी

1911 - 1993 | मुरादाबाद, भारत

एजाज़ वारसी के शेर

मैं उस के ऐब उस को बताता भी किस तरह

वो शख़्स आज तक मुझे तन्हा नहीं मिला

आप आए हैं हाल पूछा है

हम ने ऐसे भी ख़्वाब देखे हैं

राह-रौ बच के चल दरख़्तों से

धूप दुश्मन नहीं है साए हैं

चढ़ते सूरज की मुदारात से पहले 'एजाज़'

सोच लो कितने चराग़ उस ने बुझाए होंगे

बरसों में भी छू जाए किसी को तो ग़नीमत

ख़ुशबू-ए-वफ़ा यारो बड़ी सुस्त-क़दम है

संग-ए-आस्ताँ मिरे सज्दों की लाज रख

आया हूँ ए'तिराफ़-ए-शिकस्त-ए-ख़ुदी लिए

दरबानों तक के चेहरे रऊनत से मस्ख़ हैं

दस्त-ए-तलब लिए हुए फिर भी खड़े हैं लोग

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