फ़हीम जोगापुरी
ग़ज़ल 40
अशआर 14
तुम्हारी याद से ये रात कितनी रौशन है
नज़र में इतने हैं जुगनू कि हम गिनाएँ क्या
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तेरी यादें हो गईं जैसे मुक़द्दस आयतें
चैन आता ही नहीं दिल को तिलावत के बग़ैर
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मिलन के ब'अद आती है जुदाई
नरक भी स्वर्ग से कितना निकट है
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रस्ते में 'फहीम' उस की तबीअत का बिगड़ना
घर जाने का इक और बहाना तो नहीं है
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हम अहल-ए-ग़म को हक़ारत से देखने वालो
तुम्हारी नाव इन्हीं आँसुओं से चलती है
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