फ़रह ख़ान के शेर
हद-ए-इम्काँ से परे तक मैं तुझे चाहूँगी
तू मुझे अपने मयस्सर की हदों में मिलना
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
हम भूल गए अहद-ओ-करम तेरे सितम भी
अब तुझ से ज़माने से गिला कुछ भी नहीं है
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
नहीं नसीब में मंज़िल तो रास्ते क्यों हैं
तवील-तर ये जुदाई के सिलसिले क्यों हैं
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
न उस में फूल खिला और न कोई ख़्वाब उगा
कि संगलाख़ बहुत थी ज़मीं हक़ीक़त की
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
इस तेरी मोहब्बत में मिला कुछ भी नहीं है
मैं जान गई हूँ कि सिला कुछ भी नहीं है
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
उस का मिलना है अजब तरह का मुझ से मिलना
दश्त-ए-इम्कान में हो फूलों का जैसे खिलना
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
मिल ही जाओगे मुझे वक़्त की गर्दिश से परे
बस ज़रा जिस्म की दीवार गिरानी होगी
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
ये ख़द-ओ-ख़ाल भी लगते हैं अब पराए से
मुझे दिखाते नहीं हैं तो आइने क्यों हैं
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड