फ़रहत कानपुरी के शेर
'फ़रहत' तिरे नग़मों की वो शोहरत है जहाँ में
वल्लाह तिरा रंग-ए-सुख़न याद रहेगा
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टैग : शोहरत
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दौलत-ए-अहद-ए-जवानी हो गए
चंद लम्हे जो कहानी हो गए
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आँखों में बसे हो तुम आँखों में अयाँ हो कर
दिल ही में न रह जाओ आँखों से निहाँ हो कर
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दुनिया ने ख़ूब समझा दुनिया ने ख़ूब परखा
मेरी नज़र को देखा जब आप की नज़र से
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हस्ती का राज़ क्या है ग़म-ए-हस्त-ओ-बूद है
आलम तमाम दाम-ए-रुसूम-ओ-क़़ुयूद है
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दिल की राहें जुदा हैं दुनिया से
कोई भी राहबर नहीं होता