रहबर पर शेर
सफ़र में रहबर का किरदार
हमेशा मशकूक रहा है। क़ाफ़िले के लुटने के पीछे रहबर की दग़ाबाज़ियाँ तसव्वुर की गई हैं। शायरों ने इस मज़मून को एक वसी-तर इस्तिआराती सतह पर बरता है और नए नए पहलू तलाश किए हैं। ये शायरी नई हैरतों के साथ नए हौसले पैदा करती है। एक इंतिख़ाब हाज़िर है।
निगह बुलंद सुख़न दिल-नवाज़ जाँ पुर-सोज़
यही है रख़्त-ए-सफ़र मीर-ए-कारवाँ के लिए
-
टैग : प्रेरणादायक
मुझे ऐ रहनुमा अब छोड़ तन्हा
मैं ख़ुद को आज़माना चाहता हूँ
दिल की राहें जुदा हैं दुनिया से
कोई भी राहबर नहीं होता