मुहम्मद फारूक मुज़्तर का संबंध राजौरी के थानामंडी तहसील से है। उनकी साहित्यिक सक्रियता की अवधि केवल दस वर्ष रही है। इस दौरान उन्होंने एक उच्च स्तरीय उर्दू पत्रिका "धनक" का संपादन भी किया। इसके अलावा, पीर पंजाल क्षेत्र में मुहम्मद अयूब शबनम (लेखक: अदबियात पुंछ) जो सरनकोट से ताल्लुक रखते थे, "सितारों से आगे" नामक एक साहित्यिक एवं राजनीतिक पत्रिका निकाला करते थे। लेकिन मुज़्तर साहब की 'धनक' पूरी तरह से एक उच्च स्तरीय साहित्यिक पत्रिका थी।
फारूक मुज़्तर की शायरी की पहली उड़ान बेहद प्रभावशाली थी। वह पीर पंजाल क्षेत्र के पहले आधुनिक कवि माने जाते हैं। उनकी शायरी किसी विशेष आंदोलन से जुड़ी नहीं रही, लेकिन वह ज़फर इक़बाल और बानी से गहराई से प्रभावित थे। उनकी कुछ रचनाओं में शकीब जलाली की शैली की झलक भी देखने को मिलती है। हमारी रियासत (जम्मू-कश्मीर) में पृथपाल सिंह बेताब, फारूक नाज़की और रफ़ीक़ राज जैसे बड़े शायर उनके समकालीन रहे हैं।
आधुनिक उर्दू कविता में उनके अग्रज और समकालीन कवि ज़फर इक़बाल, आदिल मंसूरी, बानी, ज़ैब ग़ौरी, मुहम्मद अलवी और कुमार पाशी जैसे प्रतिष्ठित नाम हैं। मुज़्तर की शायरी में कई प्रकार के बिंब (दृश्यात्मक, श्रव्य आदि) देखने को मिलते हैं। उनकी कुछ पंक्तियाँ पढ़कर ऐसा प्रतीत होता है कि हवा में रंग और खुशबू उभर रही है। इन धुंधले बिंबों को देखने और महसूस करने पर एक संवेदनशील पाठक को आत्मिक आनंद और रोमांच की अनुभूति होती है।