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गणेश बिहारी तर्ज़

1932 - 2008 | लखनऊ, भारत

गणेश बिहारी तर्ज़

ग़ज़ल 8

अशआर 13

गर्दिशो तुम्हें ज़रा ताख़ीर हो गई

अब मेरा इंतिज़ार करो मैं नशे में हूँ

अहल-ए-दिल के वास्ते पैग़ाम हो कर रह गई

ज़िंदगी मजबूरियों का नाम हो कर रह गई

ये महल ये माल दौलत सब यहीं रह जाएँगे

हाथ आएगी फ़क़त दो गज़ ज़मीं मरने के बाद

'दाग़' के शेर जवानी में भले लगते हैं

'मीर' की कोई ग़ज़ल गाओ कि कुछ चैन पड़े

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अब मैं हुदूद-ए-होश-ओ-ख़िरद से गुज़र गया

ठुकराओ चाहे प्यार करो मैं नशे में हूँ

क़ितआ 17

पुस्तकें 2

 

चित्र शायरी 2

 

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