हैदर क़ुरैशी
कहानी 1
अशआर 6
वस्ल की शब थी और उजाले कर रक्खे थे
जिस्म ओ जाँ सब उस के हवाले कर रक्खे थे
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दिल को तो बहुत पहले से धड़का सा लगा था
पाना तिरा शायद तुझे खोने के लिए है
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दरख़्तों पर परिंदे लौट आना चाहते हैं
ख़िज़ाँ-रुत का गुज़र जाना ज़रूरी हो गया है
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चाँद बन कर चमकने वाले ने
मुझ को सूरज-मिसाल कर डाला
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