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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

हसीब सोज़

ग़ज़ल 14

अशआर 9

तू एक साल में इक साँस भी जी पाया

मैं एक सज्दे में सदियाँ कई गुज़ार गया

तेरे मेहमाँ के स्वागत का कोई फूल थे हम

जो भी निकला हमें पैरों से कुचल कर निकला

दर-ओ-दीवार भी घर के बहुत मायूस थे हम से

सो हम भी रात इस जागीर से बाहर निकल आए

ये बद-नसीबी नहीं है तो और फिर क्या है

सफ़र अकेले किया हम-सफ़र के होते हुए

यहाँ मज़बूत से मज़बूत लोहा टूट जाता है

कई झूटे इकट्ठे हों तो सच्चा टूट जाता है

पुस्तकें 18

वीडियो 8

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

हसीब सोज़

हसीब सोज़

ख़ुद को इतना जो हवा-दार समझ रक्खा है

हसीब सोज़

ख़ुद को इतना जो हवा-दार समझ रक्खा है

हसीब सोज़

दर्द आसानी से कब पहलू बदल कर निकला

हसीब सोज़

नज़र न आए हम अहल-ए-नज़र के होते हुए

हसीब सोज़

यहाँ मज़बूत से मज़बूत लोहा टूट जाता है

हसीब सोज़

हमारे ख़्वाब सब ताबीर से बाहर निकल आए

हसीब सोज़

"बदायूँ" के और शायर

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