हातिम अली मेहर
ग़ज़ल 50
अशआर 68
सारी इज़्ज़त नौकरी से इस ज़माने में है 'मेहर'
जब हुए बे-कार बस तौक़ीर आधी रह गई
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अबरू का इशारा किया तुम ने तो हुई ईद
ऐ जान यही है मह-ए-शव्वाल हमारा
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मार डाला तिरी आँखों ने हमें
शेर का काम हिरन करते हैं
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अपना बातिन ख़ूब है ज़ाहिर से भी ऐ जान-ए-जाँ
आँख के लड़ने से पहले जी लड़ा बैठे हैं हम
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हम भी बातें बनाया करते हैं
शेर कहना मगर नहीं आता
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