आप ही पर नहीं दीवाना-पन अपना मौक़ूफ़
और भी चंद परी-ज़ाद हैं अच्छे अच्छे
मेह्र, मिर्ज़ा हातिम अ’ली बेग (1815-1879)अलीगढ़ (उ॰प्र॰) के थे। मिर्ज़ापुर में मुन्सिफ़ के पद पर रहे। हाईकोर्ट में वकालत भी करते थे। कुछ दिन आगरा में आनरेरी मजिस्ट्रेट रहने का भी मौक़ा मिला। 1857 की जंग के दौरान अंग्रेज़ों को पनाह देने के इनाम में जागीर मिली। मिर्ज़ा ग़ालिब से गहरे संबंध थे। मेह्र के नाम उनके कई ख़त मौजूद हैं।