इब्राहीम अश्क के दोहे
प्यासी धरती देख के बादल उड़ उड़ जाए
ये दुनिया की रीत है तरसे को तरसाए
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मन के अंदर पी बसे पी के अंदर प्रीत
ख़ुद में इतना डूब जा मिल जाएगा मीत
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पत्थर में भी आग है छेड़ो तो जल जाए
जो इस आग में तप गया वो हीरा कहलाए
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