इबरत गोरखपुरी के शेर
वो दिल है मिरा हो नहीं सकता जो शगुफ़्ता
वो बाग़ मिरा है जो हरा हो नहीं सकता
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ज़िंदगानी की हक़ीक़त से नहीं हम वाक़िफ़
मौत का नाम जो सुनते हैं तो मर जाते हैं
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आराम किसे देती है अय्याम की गर्दिश
सीधा कोई हलचल में खड़ा हो नहीं सकता
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