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इफ़्तिख़ार नसीम

1946 - 2011 | संयुक्त राज्य अमेरिका

एक समर्पित शायर, साहसिक लेखन और सामाजिक सक्रियता के लिए प्रसिद्ध, समलैंगिक अधिकारों के समर्थक

एक समर्पित शायर, साहसिक लेखन और सामाजिक सक्रियता के लिए प्रसिद्ध, समलैंगिक अधिकारों के समर्थक

इफ़्तिख़ार नसीम

ग़ज़ल 34

नज़्म 1

 

अशआर 21

उस के चेहरे की चमक के सामने सादा लगा

आसमाँ पे चाँद पूरा था मगर आधा लगा

मुझ से नफ़रत है अगर उस को तो इज़हार करे

कब मैं कहता हूँ मुझे प्यार ही करता जाए

अगरचे फूल ये अपने लिए ख़रीदे हैं

कोई जो पूछे तो कह दूँगा उस ने भेजे हैं

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इस क़दर भी तो जज़्बात पे क़ाबू रक्खो

थक गए हो तो मिरे काँधे पे बाज़ू रक्खो

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हज़ार तल्ख़ हों यादें मगर वो जब भी मिले

ज़बाँ पे अच्छे दिनों का ही ज़ाइक़ा रखना

पुस्तकें 4

 

चित्र शायरी 4

 

ऑडियो 11

उस के चेहरे की चमक के सामने सादा लगा

ख़ुद को हुजूम-ए-दहर में खोना पड़ा मुझे

जिला-वतन हूँ मिरा घर पुकारता है मुझे

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