ईमान क़ैसरानी के शेर
दिल तो पहले ही जुदा थे यहाँ बस्ती वालो
क्या क़यामत है कि अब हाथ मिलाने से गए
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फिर कहीं बैठ के पी जाए इकट्ठे चाय
फिर कोई शाम का पल साथ गुज़ारा जाए
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चाय पीना तो इक बहाना था
आरज़ू दिल की तर्जुमानी थी
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