इंशा अल्लाह ख़ान इंशा के क़िस्से
अंधे को अंधेरे में बड़ी दूर की सूझी
जुर्अत नाबीना थे। एक रोज़ बैठे फ़िक्र-ए-सुख़न कर रहे थे कि इंशा आ गए। उन्हें मह्व पाया तो पूछा, “हज़रत किस सोच में हैं?” जुर्अत ने कहा, “कुछ नहीं ,बस एक मिसरा हुआ है। शे’र मुकम्मल करने की फ़िक्र में हूँ।” इंशा ने अ’र्ज़ किया, “कुछ हमें भी पता चले।” जुर्अत