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इन्तिज़ार हुसैन

1925 - 2016 | लाहौर, पाकिस्तान

लब्धप्रतिष्ठ कथाकार, अपनी विशिष्ट शैली और विभाजन के अनुभवों के मार्मिक वर्णन के लिए प्रसिद्ध। मेन बुकर पुरस्कार के लिए शार्ट लिस्ट किये जाने वाले पहले उर्दू-लेखक।

लब्धप्रतिष्ठ कथाकार, अपनी विशिष्ट शैली और विभाजन के अनुभवों के मार्मिक वर्णन के लिए प्रसिद्ध। मेन बुकर पुरस्कार के लिए शार्ट लिस्ट किये जाने वाले पहले उर्दू-लेखक।

इन्तिज़ार हुसैन की कहानियाँ

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वो जो दीवार को न चाट सके

याजूज माजूज की घटना को आधार बना कर इंसानों की लालच, अय्यारी और मक्कारी को बे-नक़ाब किया गया है। याजूज और माजूज रोज़ दीवार चाटते हैं, यहाँ तक कि वह दीवार सिर्फ़ एक अंडे के बराबर रह जाती है। ये सोच कर कि कल इस काम को पूरा कर देंगे, वो सो जाते हैं। सो कर उठते हैं तो दीवार फिर पहले की तरह मिलती है। अभी दीवार ख़त्म भी नहीं होती है कि उसके बाद होने वाले फ़ायदे के लालच में याजूज और माजूज के बीच लड़ाई शुरू हो जाती है। वह एक दूसरे की औलाद तक को मारने पर आमादा हो जाते हैं। उनके मतभेद इतने बढ़ जाते हैं कि वो दोनों एक दूसरे की नसलों को ख़त्म कर डालते हैं और दीवार जूँ की तूँ खड़ी रहती है।

पछतावा

यह अफ़साना इंसानी वुजूद की बक़ा के कारणों और कर्मों पर आधारित है। माधव पैदाइश से पहले कोख में ही अपनी माँ की दुख भरी बातें सुन लेता है, इसलिए वो पैदा नहीं होना चाहता। नौ महीने पूरे होने के बाद ऐन वक़्त पर वो पैदा होने से इंकार करने लगता है। बहुत समझाने बुझाने पर तैयार होता है। लेकिन जवान होने के बाद दुख की स्थिति में सारी दौलत दान कर के जंगल की तरफ़ निकल पड़ता है, जहाँ उसे विलाप करती हुई एक औरत मिलती है जिससे उसके प्रेमी ने बे-वफ़ाई की है। माधव उससे हमदर्दी करता है लेकिन मोह माया में फंसने के डर से उसे छोड़कर चला जाता है, लेकिन किसी पल उसे सुकून नहीं मिलता। महाराज के मश्वरे पर फिर उसे तलाश करने निकलता है, अर्थात जीवन का यही उद्देश्य है।

पत्ते

इंसान की नैसर्गिक इच्छाओं पर रोक लगाने और क़ाबू न पा सकने की कहानी है जिसकी रचना जातक कथा और हिंदू देव-माला के हवाले से की गई है। संजय भिक्षा लेने इस मज़बूत इरादे के साथ जाता है कि वो भिक्षा देने वाली औरत को नहीं देखेगा लेकिन एक दिन उसकी नज़र एक औरत के पैरों पर पड़ जाती है, वो उसके लिए व्याकुल हो जाता है। अपनी परेशानी लेकर आनंदा के पास जाता है वो सुंदर समुद्र का क़िस्सा, बंदरों, चतुर राजकुमारी की जातक कथा सुनाता है। संजय निश्चय करता है कि अब वो बस्ती में भिक्षा लेने नहीं जाएगा लेकिन उसके क़दम स्वतः बस्ती की तरफ़ उठने लगते हैं। फिर वो सब कुछ छोड़ कर जंगल की तरफ़ हो लेता है लेकिन वहाँ भी उसे शांति नहीं मिलती है।

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Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

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