इरफ़ाना अज़ीज़ के शेर
दिल के आँगन में उभरता है तिरा अक्स-ए-जमील
चाँदनी रात में हो रात की रानी जैसे
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करता है लहू दिल को हर इक हर्फ़-ए-तसल्ली
कहने को तो यूँ क़ुर्बत-ए-ग़म-ख़्वार बहुत है
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