एक ही शय थी ब-अंदाज़-ए-दिगर माँगी थी
मैं ने बीनाई नहीं तुझ से नज़र माँगी थी
इज़हार असर पहलें ऐसे अदीब हैं जिन्होंने उर्दू में निरंतरता के साथ विज्ञान कथा लिखा है. ‘आधी ज़िन्दगी’, ‘मशीनों की बग़ावत’ और ‘बीस हज़ार साल बाद’ जैसे विज्ञान उपन्यास लिखकर उन्होंने उर्दू में विज्ञान- कथा की परम्परा को मज़बूत किया. उनकी शाइरी भी उनके ख्याल और सोच के इसी आयाम को व्यक्त करती है.
इज़हार असर किरतपुर बिजनौर में 15 जून 1927 को पैदा हुए थे. मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त की और आजीविका की तलाश में लग गये. दिल्ली में रहकर एक लम्बे अर्से तक स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता करते रहे. ‘बानो’ और ‘चिलमन’ जैसी पत्रिकाओं का सम्पादन किया. ‘हम क़लम’ के नाम से एक पाक्षिक निकाला और एक डाइजेस्ट भी प्रकाशित किया. इज़हार असर के जासूसी वैज्ञानिक और लोकप्रिय विषयों पर आधारित उपन्यासों की संख्या एक हज़ार के लगभग बताई जाती है.
15 अप्रैल 2011 को देहांत हुआ.