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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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जगत मोहन लाल रवाँ

1889 - 1934 | लखनऊ, भारत

रुबाई के मशहूर शायर, गौतम बुद्ध पर नज़्म के लिए प्रख्यात

रुबाई के मशहूर शायर, गौतम बुद्ध पर नज़्म के लिए प्रख्यात

जगत मोहन लाल रवाँ

ग़ज़ल 11

नज़्म 1

 

अशआर 12

अभी तक फ़स्ल-ए-गुल में इक सदा-ए-दर्द आती है

वहाँ की ख़ाक से पहले जहाँ था आशियाँ मेरा

आएँ पसंद क्या उसे दुनिया की राहतें

जो लज़्ज़त-आश्ना-ए-सितम-हा-ए-नाज़ था

कुछ इज़्तिराब-ए-इश्क़ का आलम पूछिए

बिजली तड़प रही थी कि जान इस बदन में थी

पेश तो होगा अदालत में मुक़दमा बे-शक

जुर्म क़ातिल ही के सर हो ये ज़रूरी तो नहीं

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हँसे भी रोए भी लेकिन समझे

ख़ुशी क्या चीज़ है दुनिया में ग़म क्या

क़ितआ 2

 

रुबाई 9

पुस्तकें 7

 

चित्र शायरी 1

 

ऑडियो 3

'रवाँ' किस को ख़बर उनवान-ए-आग़ाज़-ए-जहाँ क्या था

राह-ओ-रस्म-ए-इब्तिदाई देख ली

वो ख़ुश हो के मुझ से ख़फ़ा हो गया

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