जागेश्वर दयाल नश्तर कानपुरी के शेर
तुम्हीं बताओ कि अब और तुम से क्या माँगूँ
ये दर्द-ए-दिल जो दिया है मुझे वो क्या कम है
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ये फ़र्त-ए-शौक़ कि सूरत तिरी नहीं देखी
मगर जबीं तिरी ताज़ीम के लिए ख़म है
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छुपाए हूँ मैं ग़म-ए-इश्क़ अपनी रग रग में
न चाक है मिरा दामन न आस्तीं नम है
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