जमुना प्रसाद राही के शेर
जो सुनते हैं कि तिरे शहर में दसहरा है
हम अपने घर में दिवाली सजाने लगते हैं
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कच्ची दीवारें सदा-नोशी में कितनी ताक़ थीं
पत्थरों में चीख़ कर देखा तो अंदाज़ा हुआ
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कश्तियाँ डूब रही हैं कोई साहिल लाओ
अपनी आँखें मिरी आँखों के मुक़ाबिल लाओ
गाँव से गुज़रेगा और मिट्टी के घर ले जाएगा
एक दिन दरिया सभी दीवार ओ दर ले जाएगा
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टैग : दरिया
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अजीब आग लगा कर कोई रवाना हुआ
मिरे मकान को जलते हुए ज़माना हुआ
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सदियों का इंतिशार फ़सीलों में क़ैद था
दस्तक ये किस ने दी कि इमारत बिखर गई
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लौट भी आया तो सदियों की थकन लाएगा
सुब्ह का भूला हुआ शाम को घर आने तक
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कौन है तुझ सा जो बाँटे मिरी दिन भर की थकन
मुज़्महिल रात है बिस्तर का बदन दुखता है
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हर रूह पस-ए-पर्दा-ए-तरतीब-ए-अनासिर
ना-कर्दा गुनाहों की सज़ा काट रही है
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टैग : अनासिर
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अमाँ किसे थी मिरे साए में जो रुकता कोई
ख़ुद अपनी आग में जलता हुआ शजर था मैं
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इक रात है फैली हुई सदियों पर
हर लम्हा अंधेरों के असर में है
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हवा की गोद में मौज-ए-सराब भी होगी
गिरेंगे फूल तो ठहरेगी गर्द शाख़ों पर
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मैं लफ़्ज़-ए-ख़ाम हूँ कोई कि तर्जुमान-ए-ग़ज़ल
ये फ़ैसला किसी ताज़ा किताब पर ठहरा
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समंद-ए-ख़्वाब वहाँ छोड़ कर रवाना हुआ
जहाँ सुराग़-ए-सफ़र कोई नक़्श-ए-पा न हुआ
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