जतीन्द्र वीर यख़मी ’जयवीर के शेर
ख़ूब गहरी जो लगी चोट तो हम ने जाना
वक़्त लगता है किसी दर्द को जाते जाते
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दुख कटे ज़हमत कटे कट जाए बद-हाली सभी
वक़्त काटे ना कटे तो क्या करें किस से कहें
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मेरे ख़्वाबों के झरोकों को सजाते रहिए
न सही वस्ल मगर याद तो आते रहिए
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लाख चाहा कि हो पहचान कोई अपनी भी
काश हम आप के ही नाम से जाने जाते
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वो नहीं आज-कल ख़फ़ा हम से
कोई निकला है रास्ता शायद
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आए हैं सुनते कि ऐसा वक़्त भी आता है जब
हो दवा या फिर दुआ कुछ कारगर होता नहीं
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