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जव्वाद शैख़

1985 | पुर्तगाल

पाकिस्तान की नई नस्ल के नुमाइंदा शाइरों में शामिल, अपने धीमे और मुतासिरकुन अंदाज़ में शेर कहने के लिए मशहूर

पाकिस्तान की नई नस्ल के नुमाइंदा शाइरों में शामिल, अपने धीमे और मुतासिरकुन अंदाज़ में शेर कहने के लिए मशहूर

जव्वाद शैख़ के शेर

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अपने सामान को बाँधे हुए इस सोच में हूँ

जो कहीं के नहीं रहते वो कहाँ जाते हैं

क्या है जो हो गया हूँ मैं थोड़ा बहुत ख़राब

थोड़ा बहुत ख़राब तो होना भी चाहिए

मैं अब किसी की भी उम्मीद तोड़ सकता हूँ

मुझे किसी पे भी अब कोई ए'तिबार नहीं

मैं चाहता हूँ मोहब्बत मुझे फ़ना कर दे

फ़ना भी ऐसा कि जिस की कोई मिसाल हो

अब मिरा ध्यान कहीं और चला जाता है

अब कोई फ़िल्म मुकम्मल नहीं देखी जाती

टूटने पर कोई आए तो फिर ऐसा टूटे

कि जिसे देख के हर देखने वाला टूटे

हम भी कैसे एक ही शख़्स के हो कर रह जाएँ

वो भी सिर्फ़ हमारा कैसे हो सकता है

लग रहा है ये नर्म लहजे से

फिर तुझे कोई मसअला हुआ है

कैसे किसी की याद हमें ज़िंदा रखती है??

एक ख़याल सहारा कैसे हो सकता है

अपनी ताईद पे ख़ुद अक़्ल भी हैरान हुई

दिल ने ऐसे मिरे ख़्वाबों की हिमायत की है

कर कुछ ऐसा कि तुझे याद रखूँ

भूल जाने का तक़ाज़ा ही सही

मैं इस ख़याल से जाते हुए उसे मिला

कि रोक लें कहीं सामने खड़े आँसू

अगर वो करने पे आता तो कुछ भी कर जाता

ये सोच मत कि अकेला शरार क्या करता

ये ना-गुज़ीर है उम्मीद की नुमू के लिए

गुज़रता वक़्त कहीं थम गया तो क्या होगा?

नहीं ऐसा भी कि यकसर नहीं रहने वाला

दिल में ये शोर बराबर नहीं रहने वाला

आओ तक़रीब-ए-रू-नुमाई करें

पाँव में एक आबला हुआ है

किताब फ़िल्म सफ़र 'इश्क़ शा'इरी 'औरत

कहाँ कहाँ गया ख़ुद को ढूँढता हुआ मैं

अब मिरा ध्यान कहीं और चला जाता है

अब कोई फ़िल्म मुकम्मल नहीं देखी जाती

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