कामी शाह के शेर
दिए के और हवाओं के मरासिम खुल नहीं पाते
नहीं खुलता कि इन में से ये किस की आज़माइश है
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मैं अपने दिल की कहता हूँ
तुम अपने दिल की सुनती हो
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हर एक गाम पे रंज-ए-सफ़र उठाते हुए
मैं आ पड़ा हूँ यहाँ तुझ से दूर जाते हुए
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मैं उड़ता रहता हूँ नीले समुंदरों में कहीं
सो तितलियों के लिए ख़्वाब लाता रहता हूँ
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फ़क़त ग़ुस्सा पिए जाते हैं रोज़ ओ शब के झगड़े में
कोई हंगामा कर सकते जो वहशत रास आ जाती
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ले उड़ा है तिरा ख़याल हमें
और हम क़ाफ़िले से निकले हैं
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वैसे तुम अच्छी लड़की हो
लेकिन मेरी क्या लगती हो
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