कैफ़ इक्रामी के शेर
मिरे आँसुओं पे नज़र न कर मिरा शिकवा सुन के ख़फ़ा न हो
उसे ज़िंदगी का भी हक़ नहीं जिसे दर्द-ए-इश्क़ मिला न हो
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तुझे क्या बताऊँ मैं बे-ख़बर कि है दर्द-ए-इश्क़ में क्या असर
ये है वो लतीफ़ सी कैफ़ियत जो ज़बाँ तक आए अदा न हो
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