कर्रार नूरी के शेर
नाकामियों ने और भी सरकश बना दिया
इतने हुए ज़लील कि ख़ुद्दार हो गए
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कौन हो सकता है आने वाला
एक आवाज़ सी आई थी अभी
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हम को भी सर कोई दरकार है अब सर के एवज़
पत्थर इक हम भी चला देते हैं पत्थर के एवज़
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ए'तिराफ़ अपने गुनाहों का मैं करता ही चलूँ
जाने किस किस को मिले मेरी सज़ा मेरे बाद
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