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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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काज़िम रिज़वी

2003 | अलीगढ़, भारत

नौजवान शायरों में शुमार, ग़ज़ल में बर्जस्तगी का इज़हार

नौजवान शायरों में शुमार, ग़ज़ल में बर्जस्तगी का इज़हार

काज़िम रिज़वी के शेर

शायद वो इस बिना पे हमें बख़्श दे कि हम

काफ़िर बने रहे मुनाफ़िक़ नहीं हुए

तेरी तरह ज़बान के कुछ तेज़ हम भी हैं

पर मसअला ये है कि अदब जानते हैं हम

चलो माना कि ख़्वाबों में मिलोगे

मगर तुम बिन किसे नींद रही है

पहले होना था आइना दिल को

और फिर चूर-चूर होना था

लोग मेरी ग़ज़लों में तुम को ढूँढ़ लेते हैं

शे'र-ओ-शा'इरी कब है दास्ताँ तुम्हारी है

मशहूर हो चुकी है किसी के लबों की बात

अख़बार-ए-दिलबराँ की सभी सुर्ख़ियाँ पढ़ो

उस के सियाह नैन की जा कर नज़र उतार

मारे हसद के चूर हुईं सुर्मा-दानियाँ

ये इंतिहा-ए-कार-ए-नुमू है कि जान-ए-जाँ

उस ने तिरे बदन सी कोई चीज़ ख़ल्क़ की

सय्यारगाँ में 'अजब इज़्तिराब बरपा है

वो बन-सँवर के सर-ए-बाम रहे होंगे

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