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ख़ावर जीलानी के शेर

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सभी किरदार थक कर सो गए हैं

मगर अब तक कहानी चल रही है

जीना तो अलग बात है मरना भी यहाँ पर

हर शख़्स की अपनी ही ज़रूरत के लिए है

वक़्त गुज़र जाता है लेकिन दिल की रंजिश

दिल में बैठी की बैठी ही रह जाती है

सच्चाई वो जंग है जिस में बाज़ औक़ात सिपाही को

आप मुक़ाबिल अपने ही डट जाना पड़ता है

वो कुछ से कुछ बना डालेगा तस्लीमात के मअनी

सलीक़ा गया उस को अगर इंकार करने का

अपने सहरा से बंधे प्यास के मारे हुए हम

मुंतज़िर हैं कि इधर कोई कुआँ निकले

वो कि बन पा नहीं रहा मुझ से

जो कि शायद बना रहा हूँ मैं

बनने वाली बात वही होती है वो जो

बनते बनते यकसर बनती रह जाती है

सुब्ह होती है तो कुंज-ए-ख़ुश-गुमानी में कहीं

फेंक दी जाती है शब भर की सियाही बाँध कर

इक चिंगारी आग लगा जाती है बन में और कभी

एक किरन से ज़ुल्मत को छट जाना पड़ता है

यूँही बेकार मैं पड़ा ख़ुद को

कार-आमद बना रहा हूँ मैं

नहीं है कोई भी हतमी यहाँ हद-ए-मालूम

हर एक इंतिहा इक और इंतिहा तक है

दिलों की शीशागरी कार-गह-ए-हस्ती में

हुनर के ज़ेर ज़बर से भी टूट सकती थी

रूह के दामन से अपनी दुनिया-दारी बाँध कर

चल रहे हैं दम-ब-दम आँखों पे पट्टी बाँध कर

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Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

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