ख़ादिम रज़्मी के शेर
उम्रें गुज़र गई हैं असर की तलाश में
किस ना-मुराद लब की दुआ हो गए हैं हम
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कुछ इस लिए भी वो सैलाब भेज देता है
कि बस्तियों में रहो और खंडर भी साथ रखो
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हम को जाना था किस तरफ़ 'रज़्मी'!
और किस सम्त हैं रवाँ हम लोग
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