ख़ालिद अहमद के शेर
तर्क-ए-तअल्लुक़ात पे रोया न तू न मैं
लेकिन ये क्या कि चैन से सोया न तू न मैं
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वो गली हम से छूटती ही नहीं
क्या करें आस टूटती ही नहीं
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क़ुमक़ुमों की तरह क़हक़हे जल बुझे
मेज़ पर चाय की प्यालियाँ रह गईं
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क़ुमक़ुमों की तरह क़हक़हे जल बुझे
मेज़ पर चाय की प्यालियाँ रह गईं
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फूल से बास जुदा फ़िक्र से एहसास जुदा
फ़र्द से टूट गए फ़र्द क़बीले न रहे
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