Khaqan Khavar's Photo'

ख़ाक़ान ख़ावर

1935 - 2001 | पाकिस्तान

ख़ाक़ान ख़ावर

ग़ज़ल 14

अशआर 5

ये रंग रंग परिंदे ही हम से अच्छे हैं

जो इक दरख़्त पे रहते हैं बेलियों की तरह

वो सँवर सकता है माक़ूल भी हो सकता है

मेरा अंदाज़ा मिरी भूल भी हो सकता है

तिरे सितम की ज़माना दुहाई देता है

कभी ये शोर तुझे भी सुनाई देता है

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यूँ हिरासाँ हैं मुसाफ़िर बस्तियों के दरमियाँ

हो गई हो शाम जैसे जंगलों के दरमियाँ

मैं सुनाता रहा दुखड़े 'ख़ावर'

और रोती रही शब भर दीवार

पुस्तकें 1

 

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