ख़ावर अहमद
ग़ज़ल 6
अशआर 6
ऐसे खिला वो फूल सा चेहरा फैली सारे घर ख़ुशबू
ख़त को छुपा कर पढ़ने वाली राज़ छुपाना भूल गई
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उस के अंदाज़ से झलकता था कोई किरदार दास्तानों का
उस की आवाज़ से बिखरती थी कोई ख़ुशबू किसी कहानी की
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उस के ब'अद तो जो करना था आप जनाब ने करना था
उस की तो मेराज यही थी आप जनाब तक आया वो
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तू चला गया है तो शहर फिर वही दश्त-ए-ग़म है मिरे लिए
वही मैं हूँ और मिरी ज़िंदगी मिरे आँसुओं में भरी हुई
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हुजूम-ए-संग में क्या हो सुख़न-तराज़ कोई
वो हम-सुख़न था तो क्या क्या न ख़ुश-कलाम थे हम
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