ख़ुर्शीद रिज़वी
ग़ज़ल 64
नज़्म 15
अशआर 27
तू मुझे बनते बिगड़ते हुए अब ग़ौर से देख
वक़्त कल चाक पे रहने दे न रहने दे मुझे
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ये दौर वो है कि बैठे रहो चराग़-तले
सभी को बज़्म में देखो मगर दिखाई न दो
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बस दरीचे से लगे बैठे रहे अहल-ए-सफ़र
सब्ज़ा जलता रहा और याद-ए-वतन आती रही
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पुस्तकें 8
चित्र शायरी 2
वीडियो 40
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