ख़ुर्शीद अहमद जामी के शेर
न इंतिज़ार न आहें न भीगती रातें
ख़बर न थी कि तुझे इस तरह भुला दूँगा
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कोई हलचल है न आहट न सदा है कोई
दिल की दहलीज़ पे चुप-चाप खड़ा है कोई
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टैग : आहट
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चमकते ख़्वाब मिलते हैं महकते प्यार मिलते हैं
तुम्हारे शहर में कितने हसीं आज़ार मिलते हैं
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ज़िंदगानी के हसीं शहर में आ कर 'जामी'
ज़िंदगानी से कहीं हाथ मिलाए भी नहीं
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पहचान भी सकी न मिरी ज़िंदगी मुझे
इतनी रवा-रवी में कहीं सामना हुआ
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यादों के दरख़्तों की हसीं छाँव में जैसे
आता है कोई शख़्स बहुत दूर से चल के
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याद-ए-माज़ी की पुर-असरार हसीं गलियों में
मेरे हमराह अभी घूम रहा है कोई
सलाम तेरी मुरव्वत को मेहरबानी को
मिला इक और नया सिलसिला कहानी को
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कुछ दूर आओ मौत के हमराह भी चलें
मुमकिन है रास्ते में कहीं ज़िंदगी मिले
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सहर के साथ चले रौशनी के साथ चले
तमाम उम्र किसी अजनबी के साथ चले
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बड़े दिलचस्प वादे थे बड़े रंगीन धोके थे
गुलों की आरज़ू में ज़िंदगी शोले उठा लाई
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तिरी निगाह मुदावा न बन सकी जिन का
तिरी तलाश में ऐसे भी ज़ख़्म खाए हैं
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जलाओ ग़म के दिए प्यार की निगाहों में
कि तीरगी है बहुत ज़िंदगी की राहों में
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वफ़ा की प्यार की ग़म की कहानियाँ लिख कर
सहर के हाथ में दिल की किताब देता हूँ
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ऐ इंतिज़ार-ए-सुब्ह-ए-तमन्ना ये क्या हुआ
आता है अब ख़याल भी तेरा थका हुआ
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