कृष्ण मोहन के शेर
वो क्या ज़िंदगी जिस में जोशिश नहीं
वो क्या आरज़ू जिस में काविश नहीं
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ज़िंदगी के आख़िरी लम्हे ख़ुशी से भर गया
एक दिन इतना हँसा वो हँसते हँसते मर गया
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कृष्ण 'मोहन' ये भी है कैसा अकेला-पन कि लोग
मौत से डरते हैं मैं तो ज़िंदगी से डर गया
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दिल एक सदियों पुराना उदास मंदिर है
उमीद तरसा हुआ प्यार देव-दासी का
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मकाँ अंदर से ख़स्ता हो गया है
और इस में एक रस्ता हो गया है
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जब भी की तहरीर अपनी दास्ताँ
तेरी ही तस्वीर हो कर रह गई
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करें तो किस से करें ज़िक्र-ए-ख़ाना-वीरानी
कि हम तो आग नशेमन को ख़ुद लगा आए
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जब भी मिले वो ना-गहाँ झूम उठे हैं क़ल्ब ओ जाँ
मिलने में लुत्फ़ है अगर मिलना हो काम के बग़ैर
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भटक के राह से हम सब को आज़मा आए
फ़रेब दे गए जितने भी रहनुमा आए
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