लता हया के शेर
लोग नफ़रत की फ़ज़ाओं में भी जी लेते हैं
हम मोहब्बत की हवा से भी डरा करते हैं
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क़िस्मत अजीब खेल दिखाती चली गई
जो हँस रहे थे उन को रुलाती चली गई
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जिसे पढ़ा नहीं तुम ने कभी मोहब्बत से
किताब-ए-ज़ीस्त का वो बाब हैं मिरे आँसू
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मैं तो मुश्ताक़ हूँ आँधी में भी उड़ने के लिए
मैं ने ये शौक़ अजब दिल को लगा रक्खा है
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तीरगी ख़ामुशी बेबसी तिश्नगी
हिज्र की रात में ख़ामियाँ ख़ामियाँ
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