लकी फ़ारुक़ी हसरत के शेर
गुलशन से कोई फूल मयस्सर न जब हुआ
तितली ने राखी बाँध दी काँटे की नोक पर
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मेरे अल्लाह मुझे ऐसे ख़यालों से नवाज़
वो जिन्हें मीर-तक़ी-'मीर' नहीं सोच सका
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दयार-ए-मीर-तक़ी-'मीर' को सलाम करो
यहाँ ख़ुदा-ए-सुख़न गाह गाह बैठते हैं
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