मजनूँ गोरखपुरी के शेर
जब से आया है वो मुखड़ा नज़र आईने को
तब से अपनी भी नहीं है ख़बर आईने को
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हिनाई हाथ से आँचल सँभाले
ये शरमाता हुआ कौन आ रहा है
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आज़ादी की धूमें हैं शोहरे हैं तरक़्क़ी के
हर गाम है पस्पाई हर वज़्अ ग़ुलामाना
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