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मख़मूर देहलवी

1900 - 1956 | दिल्ली, भारत

प्रतिष्ठित शायर, अपने शेर " मोहब्बत के लिए कुछ ख़ास दिल मख़सूस होते हैं " के लिए मशहूर

प्रतिष्ठित शायर, अपने शेर " मोहब्बत के लिए कुछ ख़ास दिल मख़सूस होते हैं " के लिए मशहूर

मख़मूर देहलवी के शेर

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मोहब्बत के लिए कुछ ख़ास दिल मख़्सूस होते हैं

ये वो नग़्मा है जो हर साज़ पर गाया नहीं जाता

किसे अपना बनाएँ कोई इस क़ाबिल नहीं मिलता

यहाँ पत्थर बहुत मिलते हैं लेकिन दिल नहीं मिलता

मोहब्बत हो तो जाती है मोहब्बत की नहीं जाती

ये शोअ'ला ख़ुद भड़क उठता है भड़काया नहीं जाता

मुसाफ़िर अपनी मंज़िल पर पहुँच कर चैन पाते हैं

वो मौजें सर पटकती हैं जिन्हें साहिल नहीं मिलता

चमन तुम से इबारत है बहारें तुम से ज़िंदा हैं

तुम्हारे सामने फूलों से मुरझाया नहीं जाता

मोहब्बत बद-गुमाँ हो जाए तो ज़िंदा नहीं रहती

असर दिल पर तुम्हारी बे-रुख़ी से कुछ नहीं होता

जिन्हें अब गर्दिश-ए-अफ़्लाक पैदा कर नहीं सकती

कुछ ऐसी हस्तियाँ भी दफ़्न हैं गोर-ए-ग़रीबाँ में

तुम्हारे नाम से मंसूब हो जाते हैं दीवाने

ये अपने होश में होते तो पहचाने कहाँ जाते

मोहब्बत अस्ल में 'मख़मूर' वो राज़-ए-हक़ीक़त है

समझ में गया है फिर भी समझाया नहीं जाता

हर इक दाग़-ए-तमन्ना को कलेजे से लगाता हूँ

कि घर आई हुई दौलत को ठुकराया नहीं जाता

मुक़ीम-ए-दिल हैं वो अरमान जो पूरे नहीं होते

ये वो आबाद घर है जिस की वीरानी नहीं जाती

तकल्लुफ़-बर-तरफ़ तुम कैसे मा'बूद-ए-मोहब्बत हो

कि इक दीवाना तुम से होश में लाया नहीं जाता

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